Saturday 5 October, 2013

निशब्द सांसे


I had written a poem in Marathi a while back titled Abol Shwaas. Many of my friends who heard me recite that poem or read it on FB and the blog, suggested that I should translate. Some of them heard me recite it but could not follow what it meant as they didn't know Marathi. So, encouraged by the appreciation, I make an attempt to translate.

कुछ निशब्द सांसे
अटक सी गई थी
मंन के एक कोने में
जैसें अवरुद्ध हुई थी

अजनबी रास्तो पर
शायद धुंड रही थी कुछ
कदमो कें पेह्चाने निशां
संभव है मांग रही थी

ख्वाबो के पंख लिये
उडा करती थी ये सांसें
अल्हड से पतंग की तरह
बादलों के पार जाती थी ये सांसें

ये हसीन सांसें गुम हुई इक रोझ
निशब्द सी हो गयी
घुल गयी दुनियादारी के रंग में
और बस फिकी सी पड गयी

आज बस हिम्मत कर ली जाए
इंन सासो को हवा दी जाए
खामोश सासो की आवाज बनू मै
कोरे कागझ में रंग भरु मैं

अपने मन की दीवार
आज मैं गिरा दू
इन सासो का बचपन
आज मै लौटा दू

मुक्त कर दू इनको
और पोह्चा दू इन्हे
ज्यादा दूर नही ...
बस, क्षितीज के पार कर दू ! 

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